hindi kahaniya
वहां पहुचकर वह बोला- स्वामी मैंने कहा था वही हुआ, आपकों आता देखकर अपने दुर्ग में छिप गया हैं, आइये आपकों उसकी सूरत दिखा देता हु, ” जरुर मै उस नीच को देखकर दुर्ग में ही उससे लडुगा.
उसने बच्चों के एक दुसरे से हाथ पकडवाऐ और नाला पार करने लगी.
दानव अपने कमरे में परेशान थे. सोचने लगे बेकार ही यहाँ आए. नही आते तो परीक्षा नही देनी पड़ती.
इस तरह बुजुर्ग ने हमारी समस्या हल कर दी.
एक विद्यार्थी ने उठकर उस रेखा उस रेखा के पास लम्बी रेखा खीच दी, जिससे पहली रेखा छोटी हो गईं.
सारी स्थति स्पष्ट थी. प्रजापति ने कहा- देवता ही श्रेष्ट हैं जानते हो क्यों ?
अतः उन्हें समझा बुझलाकर शांत करने एवं आपस में समझौता कराने का प्रयास करना चाहिए.
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि कोई भी कार्य अंतर्मन से छिपा नहीं रहता और अंतर्मन ही व्यक्ति को सही रास्ता दिखाता है.
एक खरगोश भासुरक के पास जाकर उसे बुला लाए, मै स्वय निबट लूँगा. हममे से जो बलशाली होगा, वही इस जंगल का राजा होगा.
तभी दुसरे दोस्त बोले- इसे हम सबने एक साथ देखा, इसलिए यह हम सबका हैं.
पाठशाला के रस्ते में घने पेड़ और झाड़ियाँ थी. पास ही एक जल का नाला बहता था.
महात्मा जी ने उत्तर दिया, हाँ वह अवश्य बोलती हैं, परन्तु उसकी आवाज तुम लोग नही सुन सकते हो, हम सुन सकते हैं, किन्तु यह बताओं कि भूमि जो निर्णय देगी, क्या तुम दोनों को वह मान्य होगा?
वहां खाने के लिए कुछ भुने चने भी दिए. श्रीकृष्ण लकड़ी काटते रहे और सुदामा पोटली खोलकर चने चबाते रहे. जब श्रीकृष्ण लकड़ी काटकर आए तब तक सारे चने समाप्त हो चुके थे.
दोनों महात्मा जी के चरणों में गिरकर अपनी गलती की क्षमा मांगी. उसी दिन से सबके साथ प्रेम का व्यवहार करते हुए अपने समय को भजन भक्ति में लगाते हुए अपने जीवन सफल करने लगे.